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शिष्टता की ओर वापसी

मैंने भारत के युवा की महत्वाकांक्षाओं को एक सौम्य, सफेद मारुति एस्टीम से एक आक्रामक, काले रंग की एसयूवी में बदलते हुए देखा है। इसी तरह मैंने भारत के युवा की पसंद को वन-डे क्रिकेट मैच में एक सधी हुई कवर ड्राइव का पूरा लुत्फ उठाने से किसी टी20 मैच के एक ओवर में चार छक्के लगाने के थ्रिल में बदलते हुए देखा है। इन दोनों मेटफॉर का आशय यह है कि मैंने समाज को परिपक्व शांति से खोखले शोर की ओर जाते हुए देखा है। महत्वाकांक्षा और पसंद के ये बड़े बदलाव दरअसल छोटे-छोटे कई बदलावों की एक शृंखला हैं।

नब्बे के दशक में बड़ी होती हुई पीढ़ी के एक हिस्से के रूप में अपने बचपन के अंत और युवावस्था के आरंभ में मैंने खुद भी उस सफेद, सौम्य मारुति एस्टीम की महत्वाकांक्षा रखी है, और मुझे ठीक से याद है कि उस सफेद एस्टीम में बैठा व्यक्ति, यानी कि उस समय के युवा का आदर्श शिष्ट, सभ्य था। उसका व्यक्तित्व, उसके तौर-तरीके सौम्य थे। उसके विचारों की गति उस एस्टीम की ही तरह जरूरत से ज्यादा तेज नहीं थी। मुझे इस बात के पक्ष में अपना मत रखने से कोई परहेज नहीं है कि सीमित गति से ही शिष्ट और सुदृढ़ चरित्र का निर्माण संभव है।

लेकिन सभ्यता और सौम्यता से उलट, आज के युवा की महत्वाकांक्षा, यानी कि काले रंग की, काले कांच वाली इस आक्रामक एसयूवी में बैठे हुए आज के युवा के आदर्श का शिष्टता और सौम्यता से कुछ खास वास्ता नहीं है। बल्कि इसके ठीक उलट, उसके व्यवहार में भी एक विशेष तरह की आक्रामकता है। शिष्टता और संस्कारों के स्तर की न उन्हें कुछ खास फिक्र है और न ही उन्हें आदर्श मान कर उनका अनुसरण करने वाले युवा वर्ग को। सौम्यता और अग्रेशन के इस फर्क ने हमारी महत्वाकांक्षाओं और आदर्शों को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है और यह फर्क हमारे समाज पर साफ तौर पर दिख रहा है।

देखना यह है क्या आने वाली पीढ़ियाँ टी20 के इस दौर में, एक ही ओवर में सबसे ज्यादा और सबसे ऊंचे छक्के लगाने की इस होड़ में, एक सधी हुई कवर ड्राइव का लुत्फ लेने में फिर से सक्षम हो पाती हैं या नहीं। देखना यह भी है कि सिर्फ पैसे, जुगाड़ और थ्रिल पर केंद्रित ये महत्वाकांक्षाएं अपने चरम पर पहुँच कर आखिरकार कब सैचुरेट होती हैं और नए भारत की युवा पीढ़ी कब एक बार फिर सभ्यता और शिष्टता के खोए हुए वजूद को वापस लाने की दिशा में अपना पहला कदम उठा पाती है।

© Sanjay Makhijani

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