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In a world where conformity is often valued over individuality, recognizing and embracing our individuality can be both a challenging and liberating endeavor.

अनुकरण या प्रामाणिकता

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दूर कहीं ​एक तालाब है, जिस के किनारे सटा हुआ है एक शहर- शहर जो रोशनी में नहाता है। उस तालाब के किनारे के शिथले पानी में कुछ मछलियाँ रहती हैं। कभी-कभी किनारे की सतह पर आकर वो निहारती हैं कुछ परिंदों को, जो कभी-कभी उड़ कर ऊँची इमारतों के उस शहर की ओर चले जाते हैं। वो परिंदे तालाब से दूर रह सकते हैं। उन मछलियों की तरह वो इस शिथले पानी से बंधे हुए नहीं हैं। फिर तालाब के शिथले पानी की इन मछलियों की नज़र पड़ती है उन ऊँची इमारतों के बीच उड़ते हुए कुछ और परिंदों पर। ऐसा लगता है शान से उड़ते हुए वो परिंदे इस शहर पर राज कर रहे हैं। कभी इन परिंदों से भी कुछ और ऊपर, कुछ और परिंदे उड़ते हुए नज़र आते हैं। ये बाज़ हैं। ये शायद उन परिंदों पर भी राज कर रहे हैं जिन्हें लगता है वो उस शहर पर राज करते हैं।

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इस तरह इस शहर और उसके इन परिंदों को निहारते हुई ये मछलियाँ तालाब के किनारे के इस शिथले पानी में ही रहती हैं। इस बात से बेखबर, कि इनके पीछे गहरा पानी भी है। उस गहरे पानी में भी एक शहर बसा है। अगर वो इस चमकीले शहर को निहारना छोड़, इस शिथले पानी से निकल कर अपने पीछे उस गहरे पानी में गोता लगाएं तो उन्हें दिखाई देगी एक नई दुनिया- उनकी दुनिया। एक ऐसी दुनिया जिसमें आसमान नहीं होगा। क्योंकि आसमान उनके लिए कभी था ही नहीं। उनके लिए थी गहराई। पर वे अक्सर अपने आप को किनारे के उस शिथले पानी से आगे, गहरे पानी में नहीं ले जातीं और पानी की सतह पर आकर निहारती रहती हैं ऊंची इमारतों के उस शहर को। शहर, जिसके आसमान पर उन्हें लगता है कि कुछ परिंदे राज करते हैं। 

© Sanjay Makhijani

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